क्या पैग़म्बर मुहम्मद का इस्लाम आज के इस्लाम से बिल्कुल अलग था?
क्या कुरआन, इकरा और इल्हाम - आत्मज्ञान के प्रकाश-स्तंभ थे जिन्हें हमने युद्ध और राजनीति की छाया में खो दिया है?
यह पुस्तक एक आम धार्मिक विमर्श नहीं है, यह एक आध्यात्मिक अन्वेषण है - एक निर्भीक प्रयास जो इस्लाम की मूल आत्मा की पुनर्खोज करता है।
लेखक अपने तप और अनुभव के आधार पर धर्म, आत्मज्ञान और आधुनिक समय के भ्रमों के बीच गहन संवाद रचते हैं। वे पूछते हैं
क्या 'ग़ज़वा' युद्ध नहीं बल्कि आत्मिक क्रांति थी? क्या 'इल्हाम' केवल वह दिव्य संवाद था जिससे मानवता स्वयं को जान पाती थी? क्या 'इकरा' का अर्थ मात्र पढ़ना नहीं, बल्कि होशपूर्वक आत्मपठन था?
पुस्तक धर्म को केवल पूजा-पद्धति नहीं, बल्कि आत्मिक विज्ञान के रूप में प्रस्तुत करती है - जहां इस्लाम का वास्तविक स्वरूप दया, आत्मसंवाद, शांति और आत्मज्ञान के गुणों से जुड़ा हुआ है।
""इस्लाम समाधान या समस्या?"" आपको आम धारणाओं से बाहर निकलने को प्रेरित करेगी। यह न केवल कड़े सवाल उठाती है, बल्कि गहन समाधानों की दिशा भी दिखाती है - जो हमें मुहम्मद साहब के वास्तविक दीन और उसकी खोई हुई रोशनी तक ले जाते हैं।
अगर आप आज के समय में इस्लाम, धर्म, या आत्मज्ञान को लेकर गहराई से सोच रहे हैं - तो यह पुस्तक आपकी चेतना के द्वार खटखटाएगी।
✅ उपयुक्त पाठकवर्गधर्म, दर्शन और अध्यात्म में रुचि रखने वाले पाठक इस्लाम की गहराई को समझना चाहने वाले खोजी व्यक्ति शांति, संवाद और आत्मज्ञान को जीवन में उतारने की जिज्ञासा रखने वाले लोग धार्मिक भ्रमों, आतंकवाद या सामाजिक विघटन के मूल को समझने की चाह रखने वाले